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जब शरीर में विटामिन डी कम होता है तो ग्रंथियां रक्त में कैल्शियम के स्तर को सामान्य सीमा के भीतर बनाए रखने के लिए हड्डियों से कैल्शियम लेती हैं जिससे हड्डियों के घनत्व (Bone Density) में कमी आती है और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं उनमें इसकी कमी से प्रभावित होने का सबसे अधिक जोखिम होता है।
ब्रांड डेस्क, नई दिल्ली। विटामिन डी यानी "सनशाइन विटामिन" हमारी हड्डियों के स्वास्थ्य और विकास के लिए एक आवश्यक विटामिन है, लेकिन आज भी इसे नजरअंदाज किया जाता है। हालांकि, यह शिशु और बच्चों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह स्केलेटल सिस्टम की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हमें विटामिन डी की आवश्यकता क्यों है?
सीधे शब्दों में कहें तो, विटामिन डी शरीर को कैल्शियम और फास्फोरस को बेह्तर तरीके से अवशोषित और विनियमित करने में मदद करता है, जो हड्डियों के स्वास्थ्य और स्वस्थ मांसपेशियों के टिश्यू में सहायता करता है। यह शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम को बढ़ाने और इंफ्लेमेटरी प्रोटीन के प्रोडक्ट्शन में भी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
क्या होता है जब हमारे शरीर में विटामिन-डी का लेवल कम होता है?
जब शरीर में विटामिन डी कम होता है, तो ग्रंथियां रक्त में कैल्शियम के स्तर को सामान्य सीमा के भीतर बनाए रखने के लिए हड्डियों से कैल्शियम लेती हैं, जिससे हड्डियों के घनत्व (Bone Density) में कमी आती है और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनमें इसकी कमी से प्रभावित होने का सबसे अधिक जोखिम होता है। उनकी हड्डियां कमजोर और नाजुक हो सकती हैं और आसानी से टूट सकती हैं। वे रिकेट्स के भी शिकार हो सकते हैं, जो विटामिन डी की कमी के कारण होता है, जिसमें पैरों का विकास अवरुद्ध हो जाता है। यह बच्चे की इम्यूनिटी और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और यहां तक कि यह किशोर गठिया ( Juvenile Arthritis) का कारण भी बन सकता है।
हमें विटामिन डी कहां से मिलता है?
सूर्य का प्रकाश विटामिन डी (90% से अधिक) का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद है। जब आपकी त्वचा सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आती है, तो सूर्य की UVB किरणें त्वचा कोशिकाओं में कोलेस्ट्रॉल पर पड़ती हैं, जिससे विटामिन डी का संश्लेषण होता है। हालांकि, सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आने पर शरीर द्वारा उत्पादित विटामिन डी की मात्रा कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि त्वचा का रंग (मेलेनिन कॉन्टेंट), मौसम, समय, दिन, बादल, वायु प्रदूषण आदि।
विटामिन डी के कई स्रोत हैं। यह वसायुक्त मछली (सैल्मन, सार्डिन, मैकेरल, टूना, कॉड), रेड मीट, लीवर, रेनबो ट्राउट, अंडे का पीला भाग, मशरूम1 आदि में पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन डी संतरे के रस, अनाज और दूध में भी पाया जाता है। हालांकि, ये सभी खाद्य पदार्थ आमतौर पर बच्चों के आहार में ज्यादा प्रभावी नहीं होते हैं, यही कारण है कि रोजाना इस पोषक तत्व की पर्याप्त मात्रा प्राप्त करना मुश्किल होता है। इसके अलावा, इन खाद्य पदार्थों में विटामिन डी की मात्रा रोजाना की विटामिन डी की जरूरतों को पूरा नहीं करती हैं।
बच्चों में विटामिन डी की कमी का क्या कारण है?
दुनिया भर में यह देखा गया है कि शिशुओं में विटामिन डी की कमी आम है, इसकी व्यापकता दर (Prevalence Rates) 2.7% से 45%2 तक है। 2 वर्ष तक के शिशुओं में विटामिन डी कमी के विकसित होने का खतरा ज्यादा होता है, क्योंकि वे आमतौर पर वयस्कों की तुलना में कम धूप के संपर्क में आते हैं। 1 से 11 वर्ष की आयु के बच्चों में व्यापकता दर 15% और 12 से 193 वर्ष की आयु के बच्चों और किशोरों में 14% है। बच्चों में विटामिन डी की कमी का खतरा हो सकता है यदि:
1. बच्चा अधिकांश समय घर के अंदर बिताएं और ज्यादा धूप न लें
2. उनकी त्वचा डार्क कलर की है
3. वे अपनी पूरी त्वचा को कपड़ों से ढककर रखते हैं
4. वे ठंडी जलवायु में रहते हैं
5. वे शाकाहारी आहार खाते हैं
6. वे लंबे समय से स्तनपान कर रहे हैं और स्तनपान करा रही मां में विटामिन डी कमी है
7. उनके शरीर में विटामिन डी के स्तर को प्रभावित करने वाली कंडीशन - उदाहरण के लिए, लीवर रोग, किडनी की बीमारी, सीलिएक रोग या सिस्टिक फाइब्रोसिस
8. वे ऐसी दवाएं ले रहे हैं जो विटामिन डी के स्तर को प्रभावित कर सकती हैं
विटामिन डी की कमी का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
विटामिन डी की कमी बच्चों में हड्डियों को कमजोर कर सकता है, जिससे रिकेट्स की स्थिति पैदा हो सकती है। रिकेट्स के होने से हड्डियों में दर्द, विकलांगता और फ्रैक्चर की संभावना बढ़ सकती है। इसके अलावा, विटामिन डी की कमी से बच्चों में मांसपेशियों की ताकत और सहनशक्ति कम हो सकती है। अध्ययनों से पता चला है कि शरीर की मांसपेशियां तभी बेहतर तरीके से काम करती है जब शरीर में विटामिन डी पर्याप्त हो4। अगर बच्चे में विटामिन डी की कमी है, तो उनके मांसपेशियों में कमजोरी का अनुभव हो सकता है, जिससे शारीरिक गतिविधियों में परेशानी हो सकती है। इससे खेल, मनोरंजक गतिविधियों और यहां तक कि दिन-प्रतिदिन के कार्यों में कठिनाई हो सकती है5।
इसके अतिरिक्त, बच्चे के शरीर में विटामिन डी की कमी उनके अवरुद्ध विकास, विकास में देरी, चिड़चिड़ापन, सुस्ती, कम कैल्शियम स्तर के कारण दौरे, भूख न लगना और बार-बार श्वसन संक्रमण का कारण बन सकता है6। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि विटामिन डी की कमी किशोरों की तुलना में छोटे बच्चों में अधिक देखा जाता है।
बच्चों में विटामिन डी की कमी को कैसे रोकें?
ये हैं कुछ निवारक उपाय और उपचार जो बच्चों में इस कमी से निपटने में मदद कर सकते हैं:
1. धूप में समय बिताएं: स्वस्थ विटामिन डी के स्तर को बनाए रखने का बेहतर तरीका यह है कि अपने बच्चे को धूप में बाहर खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। खासकर सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे के बीच जब UVB किरणें सबसे अधिक होती हैं। डार्क स्किन वाले बच्चों को लगभग 30-45 मिनट धूप में रहने की आवश्यकता होती है, जबकि लाइट स्किन वाले बच्चों को लगभग 15 मिनट धूप में रहने की आवश्यकता है। हालांकि, सनबर्न से बचने के लिए उचित सन प्रोटेक्शन के उपाय भी करें।
2. आहार स्रोत: अपने आहार में विटामिन डी से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल करें, जैसे वसायुक्त मछली (सैल्मन, मैकेरल), फोर्टिफाइड डेयरी उत्पाद और अंडे का पीला भाग।
3. सप्लीमेंट: अगर विटामिन डी के स्तर को बढ़ाने के लिए आहार और सन एक्सपोजर नहीं मिल रहा है, तो सप्लीमेंट लेने की सिफारिश की जाती है। हालांकि, इसे एक डॉक्टर या हेल्थकेयर प्रोवाइडर के मार्गदर्शन में लेना चाहिए। शिशुओं (0-12 महीने) के लिए 400 IU/दिन (10mcg) की खुराक की सिफारिश की जाती है, जबकि 1 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए 600 IU/दिन (15mcg) की खुराक की सिफारिश की जाती है7।
4. कैल्शियम का सेवन बढ़ाएं: विटामिन डी की कमी वाले बच्चों और किशोरों को यह सलाह दी जाती है कि सप्लीमेंट या पर्याप्त कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ जैसे दूध, दही, पनीर आदि के माध्यम से प्रतिदिन कम से कम 500 मिलीग्राम8 कैल्शियम का सेवन करना चाहिए।
5. नियमित शारीरिक गतिविधियां: मांसपेशियों की ताकत और पूरे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए बच्चों को उम्र के अनुरूप शारीरिक गतिविधियों में शामिल करना चाहिए।
6. डॉक्टर की निगरानी: बाल रोग विशेषज्ञ के साथ नियमित जांच से विटामिन डी के स्तर का पता लगाना चाहिए, जिससे इसकी कमी को तुरंत दूर करने में मदद मिल सकती है।
बच्चों की ताकत और सेहत के लिए विटामिन डी का पर्याप्त होना जरूरी है। मांसपेशियों की ताकत और सहनशक्ति से लेकर हड्डियों के स्वास्थ्य तक, यह महत्वपूर्ण पोषक तत्व बहुआयामी भूमिका निभाता है। बताए गए निवारक उपायों को अपनाकर हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बच्चे मजबूत मांसपेशियों, स्वस्थ हड्डियों और समग्र कल्याण के साथ आगे बढ़ें। स्वस्थ बच्चों के पालन-पोषण की अपनी यात्रा में आप भी Nutricheck पर आसानी से अपने बच्चे के Vitamin D स्तर की जांच करें। जांच करने के लिए, https://www.tayyarijeetki.in/ पर जाएं।
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